अधुरे सपनें
"देखा मैने सपनों का मेला
ढलती शाम से पहले
खो गया मैं उसमें अकेला
ढलती शाम से पहले।"
अक्सर हम अपनी छोटी सी जिन्दगी में छोटे- बड़े सपने देखा ही करते है। कुछ सपने आँख बंद कर के देखे जाते है तो कुछ सपने खुले आँखों से देखे जाते है, लेकिन बंद आँखों देखे को सपने को हम अक्सर भूल जाया करते है, मगर कुछ लोग खुली आँखों से देखे गये सपनें पर विशवास नहीं करते है और कोशिश किये बिना ही हार मान जाते है और कुछ लोग अपने छोटे सपनों को अधुरा ही छोड़ कर चल बसते है।
१.
कुछ ऐसा ही हाल था अपने गोपाल का। गोपाल एक नौ वर्ष का गरीब लड़का था। वह घर की खिड़कीशाम होते ही गोपाल की माँ अमीना आई। अमीना एक मूस्लिम जाति की औरत थी, लेकिन गोपाल का बाप हिन्दू था और वह हिन्दु की बस्ती होने के वजह से पूरे गाँव में लोग उन्हें नीच समझते थे। पिता के गुजर जाने के बाद गोपाल का सारा भार अमीना पर आ गया था। अमीना दुसरों के घर बर्तन मांजने का काम करती थी इसी से दोनों माँ- बेटे का गुजारा हो जाता था। अमीना ने आते ही झट से रोटी बनाने का काम शुरू किया। तीन रोटियां बनने के बाद गोपाल ने बड़े प्यार से अपनी माँ के तरफ देखा। अमीना भी समझ गई कि उसे भूख लगी है। अमीना ने एक प्लेट में दो रोटियां निकाल कर गोपाल के सामने बढ़ा दिया। तब जाकर गोपाल के जान में जान आई।
अगले दिन सुबह गोपाल हमेशा की तरह बाहर निकल पड़ा अपने गाँव की कच्ची सड़कों पर। वह दौड़ता हुआ इधर उधर टहलने लगा, मानो जैसे कोई चिड़ियां का बच्चा उड़ने के लिए पंख फड़फड़ा रहा हो। गाँव में एक बड़ा सा बरगद का पेड़ था जिसके नीचे काफी बच्चे बड़े मजे से खेल रहे थे। उन बच्चों ने गोपाल को देखते ही उसे बूरा भला कहना शुरू कर दिया। गोपाल दु:खी होकर वहाँ से चला गया। वह भी इन बच्चों के साथ खेलना चाहता था, मगर वह बदनसीब कीसमत का मारा था। वह वहाँ से चुपचाप चला जाता है और एक बड़े से खजूर के पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाता है। अपनी ही टोली से खदेड़े जाने का दु:ख तो था ही मगर उससे भी बड़ा दु:ख यह था कि उस गाँव के सारे बच्चे स्कुल जाते थे मगर वो स्कुल नही जा सकता था। वह बिल्कुल अकेला पड़ गया था।
दोपहर का समय था। धुप काफी तेज थी। गोपाल को काफी गर्मी लग रही थी, इसलिए उसने घर वापस जाने का फैसला किया। हमेशा की तरह उसका आज का भी दिन खराब गुजरा, फिर भी वह खुश था क्योंकि वह जानता था कि उसकी माँ ही उसे वो सारा प्यार दे सकती है जिसका वह हकदार है। झुठी शान और शौकत तो लोगों की फिदरत बन चुकी है मगर वह इन बातों से अंजान था। उसे यह भी नहीं पता था कि सारे गाँव के लोग उससे और उसकी माँ से उसकी माँ नफरत क्यों करते है और न ही कभी हिन्दु और मुस्लिम में फर्क जानने की कोशिश की। वो तो बेचारा बस प्यार का भूखा था।
२.
गोपाल घर पहुँचा तो देखा कि घर का दरवाजा खुला हुआ था। वह समझ गया कि उसकी माँ बड़ी जल्दी घर आ गई है। वह घर के अन्दर गया तभी उसने देखा कि उसकी माँ खाट पर लेटी हुई है।उसने माँ से पुछा- "माँ आप लेटी क्यों हो।"
अमीना- "कुछ नहीं बेटे जरा तबीयत ठीक नहीं लग रही है इसलिए लेटी हूँ।"
तभी बैठे- बैठे गोपाल ने अपनी पुरी दिन भर की कहानी माँ को सुना डाली। माँ की आँखों में आँसु की गंगा बहनी शुरू हो गयी।
गोपाल ने कहा- "माँ तुम मत रो। जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तब मैं तुम्हें बहुत सारे पैसे कमा कर दुँगा। तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होगी।"
अमीना आँखों में आँसु लिए अपने बेटे की बाते बड़े गौर से सुनती जा रही थी।
गोपाल कहता गया- "जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊँगा तो गाँव के सारे लोग मुझे 'साहब' कहकर बुलायेंगे और तुम्हें सभी लोग सर आँखों पर बैठायेंगे और मैं सभी द:खी लोगों की मदद करूँगा।"
इतनी बातें सुनते सुनते अमीना को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। गोपाल अपनी माँ को वहीं बैठा बैठा देखता रहा। भुख तो लगी ही थी लेकिन उसने माँ नींद से जगाना ठीक नहीं समझा। रात हो गई और गोपाल भी माँ के पास सर रखकर सो गया।
अगले दिन जब गोपाल की नींद खुली तो उसने अपनी माँ को देखा तो अमीना अभी भी सोयी थी। उसने अमीना को जगाने की कोशिश की लेकिन अमीना ने आँख तक नहीं खोली। यह देखकर गोपाल घबरा गया। तब धीरे धीरे उसकी आँखों में आँसू की बूँदें टपकनी शुरू हो गयी। गोपाल के रोने की आवाज सुनकर आस पड़ोस के लोग उसके घर के पास लोग इकट्ठे हो गये। लोगों ने आपस में भुनभुनाना शुरू कर दिया।
किसी ने कहा- "अच्छा हुआ जो ये मर गई। अब इस गाँव में शांति तो मिलेगी।"
तो किसी ने कहा- "इसके मुल्क के लोगों ने हमारे मुल्क के लोगों का कितना खुन बहाया था? ये तो इसके कर्मो की सजा है।"
गोपाल सारी बातों को चुपचाप सुनता गया और लोग ताने पर ताने कसते गये। लोगों ने अमीना के मृत शरीर को डोम से फेंकवा दिया। गोपाल फुट फुट कर रो पड़ा। लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी। उसके जीवन की यह सबसे बड़ी दु:ख भरी घटना थी। जिसे वह भुला न सका और उसके अन्दर बदले की भावना जाग ऊठी। कहते है "नफरत की आग बहुत दुर तक जाती है और तब तक नहीं बुझती जब तक वह किसी को अपनी चपेट में न ले ले।"
३.
इसी तरह एक हफ्ता बीत गया। गोपाल अब उसी गाँव के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठा रहता था और किसी की दया से उसे जो भी खाने को वहाँ मिलता वह उसी से काम चला लिया करता था। अब वह हर रोज अमीर बनने के बारे में सोचा करता था।एक दिन गोपाल मंदिर की सीढ़ी पर पर बैठकर न जाने किन ख्यालों में खोया हुआ था। तभी उसकी नजर दो व्यक्ति पर पड़ी। वो दोनों गोपाल को देखकर आपस में बातें कर रहे थे।
एक व्यक्ति ने कहा- "ये लड़का यहाँ क्या कर रहा है? ये शहर क्यों नही चला जाता? वहाँ जायेगा तो चार पैसे कमायेगा। यहाँ बैठ कर भीख मांग रहा है।" उसी वक्त मंदिर के बाहर एक बड़ी सी गाड़ी आकर खड़ी हुई। गोपाल उस गाड़ी को देखता ही रह गया। उस गाड़ी से एक आदमी बाहर आया। सुट बूट पहने हाथ में घड़ी और कोट के जेब में एक सुनहरी कलम लिये। वह मंदिर की सीढ़ियों चढ़ ही रहा था कि उसकी नजर नीचे बैठे गोपाल पर पड़ी। उसने गोपाल को देखा और एक रूपये का सिक्का दे दिया और मंदिर के अन्दर चला गया। गोपाल उस सिक्के को बड़े गौर से देखने लगा क्योंकि पहली बार किसी ने उसे पैसे दिये थे। पैसे देखकर उसके आँखों में अजीब सी खुशी झलक उठी। गोपाल को उस व्यक्ति की बात याद आई कि वह व्यक्ति शहर जाने के बारे में बात कर रहा था। तभी गोपाल ने भी शहर जाने का फैसला किया। थोड़ी देर बाद वह आदमी मंदिर से बाहर आया। उसने गोपाल को कुछ फल खाने को दिये और वह अपनी गाड़ी के तरफ बढ़ने लगा। उसके साथ दो नौकर भी थे। तभी गोपाल ने पीछे से आवाज लगाई- "ओ साहब।" यह सुनकर वह आदमी पीछे मुड़ा और गोपाल को देखकर कहा- "कहो बेटे क्या काम है? तुम्हें और कुछ चाहिए?"
गोपाल ने कहा- "मुझे शहर जाना है। क्या आप मुझे शहर छोड़ देंगे?"
उसने कहा-"क्यों वहाँ तुम्हारा कोई रिश्तेदार रहता है?"
गोपाल ने कहा-"नही मैं फिर भी वहाँ जाना चाहता हूँ।"
उस आदमी ने पुछा-"तुम्हारे माँ बाप कहाँ है?"
गोपाल ने कहा-"वो मर चुके है। अब मैं अनाथ हूँ और शहर जाकर मैं काम करना चाहता हूँ।"
उस आदमी को गोपाल पर दया आ गई और बड़ी नम्रता से उसने कहा-"ठीक है। तुम मेरे साथ चलो मैं तुम्हें काम दिलाउँगा। मेरी गाड़ी में बैठ जाओ।"
४. गोपाल गाड़ी में बैठ जाता है। गाड़ी में बैठते ही वह अमीरों वाला सुकून महसुस करने लगता है। गाड़ी धीरे धीरे अपनी रफ्तार पकड़ती है। गोपाल गाड़ी की खिड़की पर हाथ फेरता है और उस आदमी से कहता है-"क्या ऐसी गाड़ी मेरे पास भी हो सकती है?"
उस आदमी ने कहा-"जरूर, लेकिन तुम्हें इसके लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।"गोपाल-" मुझे क्या करना होगा?"
उस आदमी ने कहा- "तम्हारे पास कुछ ऐसी अनमोल चीज होनी चाहिए जो किसी के पास न हो। जिसके जरिये लोग तुमसे प्रभावित हो। अच्छा ये सब बाते छोड़ो वैसे मैं तुम्हारा नाम पुछना भूल गया। वैसे तुम्हारा नाम क्या है?"
गोपाल- "मेरा नाम गोपाल है।"
गोपाल फिर खिड़की से बाहर झाँकने लगता है। बड़ी बड़ी इमारते देख कर गोपाल समझ गया की शहर आ गया है। शहर की बड़ी बड़ी सड़के, बड़ी बड़ी इमारते देखकर वह थोड़ा डर गया।
तभी उस आदमी ने कहा- "तुम इतने बड़े शहर में आ तो गये हो पर रहोगे कहाँ?"
गोपाल- "मैं नहीं जानता।"
तब उस आदमी को उस पर थोड़ी दया आ गई और उसने गोपाल को अपने घर पर ही रखने का फैसला किया और उसे कोई काम भी दिलवाने का फैसला किया। इससे गोपाल भी काफी खुश हुआ। उसे लगा की अब उसके सारे सपने पुरे हो जाऐगें। उसने कहा- "तुम मेरे घर चलो मै तुम्हें वहीं पर काम दूंगा।"
उस व्यक्ति ने गोपाल को अपने घर पर ले आया। गोपाल ने जैसे ही घर में कदम रखा वह घर को देखता ही रह गया। मानो वह किसी बड़े महल में आया हो। उस आदमी ने उसे अपने बीवी बच्चों से मिलवाया। वह आदमी उस शहर का बहुत बड़ा व्यापारी था। उसका एकलौता बेटा था रवि जिससे वह बेहद प्यार करता था। रवि की उम्र भी करीब गोपाल के ही जितनी थी। गोपाल को देखकर रवि को थोड़ा बुरा लगा, लेकिन उसने कुछ नही कहा।
अगले दिन सुबह होते ही उस आदमी ने गोपाल को अपने दफ्तर पर ले आया और गोपाल से कहा -"तुम्हें यहाँ आकर रोज थोड़ी सी साफ सफाई करनी पड़ेगी तुम तैयार हो न?"
गोपाल ने हँसकर जवाब दिया -"मैं तैयार हूँ।"
उस आदमी ने कहा -"बदले में मैं तुम्हें कुछ पैसे दे दिया करूँगा।"
गोपाल इस वजह से बहुत खुश था। उस अनाथ को शायद सहारा मिल चुका था। इसी तरह कुछ वर्ष बीत गये। अब गोपाल की उम्र तेरह वर्ष की हो चुकी थी। एक तरफ गोपाल उस व्यक्ति के साथ रह कर नई नई चीजें सीखने लगा था तो दुसरी तरफ रवि उसे अपने घर से निकालने की तरकीबें सोच रहा था और एक दिन उसे यह मौका मिल गया।
५.
एक दिन रवि ने शाम के समय अपने पिता से नई साईकिल खरीदने की जिद की। उसके पिता ने उसे साईकिल के पैसे दे दिये। रवि ने उस पैसे को ले जाकर अपने कमरे में रख दिया। रात होते ही रवि ने चुपके से उन पैसो को ले जाकर गोपाल के कमरे में रख आया। सुबह होते रवि ने पैसे खोने की बात अपने पिता से कही। पिता ने नौकरों को पुरे घर की तलाशी लेने को कहा। तभी पैसे गोपाल के कमरे से नौकरों को मिले। इस पर वह आदमी बहुत गुस्सा हुआ।उस आदमी ने गोपाल से पुछा- "ये पैसे तुम्हारे पास कैसे आया।"
गोपाल -"मुझे नही पता।"
उस आदमी की पत्नी ताने पर ताना कसती गयी। उस आदमी गोपाल को घर से निकल जाने को कहा। गोपाल चुपचाप बिना कुछ बोले घर से चला गया। उस आदमी को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि गोपाल ऐसा कर सकता है, फिर भी वह मजबूर था। अब वह सोच में डुब गया कि माँ से किये वादे को कैसे पुरा करे। उसने पुरे दिन इधर उधर भटक कर काम ढुँढा, पर कोई फायदा नहीं हुआ।
जब उसने अपनी दोनों जेब में हाथ डाला तो उसमें उसे एक जेब में पाँच सौ रूपये मिले जो उसने वहीं कमा कर जमा किये थे, और दुसरी जेब में उसे वही एक रूपये का सिक्का मिला जो उसे मंदिर में मिले थे। उसने खुश होकर पैसे रख लिये। रात हो गई मगर कोई नौकरी नही मिली। वह जाकर चुपचाप फुटपाथ पर जाकर भूखा ही बैठ गया। वहीं पर उसने एक लड़के को बैठकर पैसे गिनते देखा जो लगभग उसी की उम्र का था। पैसे गिनने के बाद उस लड़के ने गोपाल की तरफ देखकर कहा- "नया आया है।"
गोपाल ने कहा- "हाँ तुम्हें कैसे पता।"
उसने कहा- "मेरा नाम रमेश है और मैं सब जानता हूँ कि कौन क्या क्या करता है।"
गोपाल ने पुछा- "तुम क्या करते हो?"
रमेश- "मैं जुते पाॅलिश करता हूँ। वैसे तुम्हारा घर कहाँ है?"
गोपाल- "मेरा कोई घर नहीं है।"
रमेश- "तू मेरे घर चल।"
फिर क्या था, गोपाल खुश होकर उसके घर चला गया। रमेश का घर एक पुराने से झोपड़े मेें था। जहाँ रमेश की माँ चुल्हे के पास बैठ कर रोटियां बना रही थी। इतने में रमेश ने आकर अपनी माँ को गोपाल के बारे में सबकुछ बताया। रमेश की माँ गोपाल को अपने बेटे की तरह प्यार करने लगी। गोपाल को भी रमेश की माँ में अपनी माँ नजर आने लगी। रमेश की एक माँ ही सबकुछ थी। रमेश के ही पैसों से घर चलता था, इसलिए गोपाल ने भी काम करने का फैसला किया और दुसरे ही दिन वह काम ढूँढने अकेले ही निकल पड़ा। बहुत देर तक काम ढूँढने के बाद उसे एक कपड़े की दुकान में झाड़ू मारने काम मिल गया। दो हजार रूपये महीने में वह काम करने लगा। इसी खुशी में उसने सौ रूपये की मिठाई खरीदी और घर में सबका मुँह मीठा कराया, और खुशी खुशी काम करने लगा।
६.
पाँच साल की कड़ी मेहनत के बाद वह उस दुकान सबसे अच्छा सेेेल्समेन बना। उसके वजह से ही उस दुकान की बिक्री काफी बढ़ चुकी थी, इस वजह से उस दुकान का मालिक उससे बहुत ज्यादा खुश था। अब व्यापार के कई तौर तरीके जानता था। वह जहाँ रहता था वहाँ के आसपास के लोगों में भी उसकी चर्चा थी।सब कहता कि वह व्यापार में सबसे तेज है। वह जिस व्यापार को हाथ लगाता उसे सफल बना ही देता।एक दिन की बात है उसी दुकान पर एक व्यक्ति सुट बूट पहने गोपाल से मिलने आया। गोपाल दुकान पर ही था। उसने दुकान के मालिक से गोपाल के बारे में पुछा। फिर गोपाल से सीधे मिलने आया। लेकिन गोपाल एक ग्राहक को कपड़े दिखाने में व्यस्त था। वह आदमी चुपचाप गोपाल को बड़े गौर से देख रहा था। जब गोपाल का काम खत्म हुआ तब उस आदमी ने गोपाल पास आकर कहा- "मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ।" गोपाल पहले तो आश्चर्य में पड़ गया। वह सोचने लगा कि यह कौन है जो मुझसे मिलना चाहता है।
गोपाल ने कहा- "कहिए।"
उस व्यक्ति ने कहा- "मैं एक बहुत बड़े फण्ड कम्पनी का मालिक हूँ। कुछ दिनों से मेरी कम्पनी बहुुत घाटे में चल रही है। इसलिए मैं तुमसे मदद माँगने आया हूँ। मैनें सुना कि तुम कोई भी व्यापार अच्छा चला लेते हो। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम मेरी कम्पनी में काम करके उसे सुधार दो। इसके लिए मैं तुम्हें बहुत पैसे दूँगा।"
गोपाल (कुछ सोचकर)- "पर मैं तो सिर्फ अठारह साल का हूँ। भला मैं कैसे इतनी बड़ी कम्पनी में काम कर सकता हूँ।"
वह आदमी बोला- "व्यापार में उम्र नहीं देखी जाती है। तुम चाहो तो तुम सब कुछ कर सकते हो।"
गोपाल को अब एक बहुत बड़ी चुनौती का सामना करना था। गोपाल तैयार हो गया।
दुसरे ही दिन गोपाल सभी से विदाई लेकर जाने वाला था। उस आदमी ने उसे रहने के लिए एक बड़ा सा कमरा दिया था। उसे वही जाकर रहना था। रमेश भी थोड़ा दुखी था। अपने दोस्त को जाता देख उसे दुख हुआ। मगर वह कर भी क्या सकता था। गोपाल सभी को दिलासा देकर अपने सपने को पुरा करने निकल पड़ा।
दो वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद गोपाल ने बहुत बड़ी सफलता हासिल कर ली। उसने न केवल कम्पनी को घाटे से बचाया बल्कि उसने कम्पनी कई तरह के सुधार भी किये। इसके वजह से अखबार में उसकी फोटो छपने लगी। अब वह उस शहर के सबसे बड़े व्यापारियों में गिना जाने लगा। उस कम्पनी के मालिक ने खुश होकर उसे पुरस्कार देने का फैसला किया। गोपाल ने रमेश और उसकी माँ को भी अपने पास बुला लिया था। अब गोपाल बड़ी बड़ी गाड़ियों में घुमने लगा था। उसके सारे सपने पुरे होने वाले थे। पुरस्कार देने की तारीख रखी गई और एक बहुत बड़ी पार्टी रखी गई जिसमें शहर के बड़े बड़े व्यापारियों को बुलाया गया। जिसमें वह आदमी भी आया हुआ था जिसने गोपाल को घर से निकाला था। वह आदमी गोपाल से माफी भी माँगना चाहता था। पुरस्कार ठीक रात के बारह बजकर एक मिनट पर दिया जाने वाला था। मगर गोपाल अभी पार्टी में पहुँचा नहीं था। सभी उसी का इंतजार कर रहे थे। गोपाल और रमेश दोनों एक साथ गाड़ी से आ रहा था। बारह बज चुके थे मगर गोपाल अब तक नहीं पहुँचा था। थोड़ी देर बाद एक आदमी ने आकर चिल्लाते हुए कहा- "गोपाल कार र्दूघटना में मारा गया।" सभी लोग यह सुनकर हताश में पड़ गये। रमेश की माँ अस्पताल पहुँची। रमेश सिर्फ घायल हुआ था। मगर अस्पताल में गोपाल की लाश थी। कुछ लोग गोपाल को देखने अस्पताल पहुँचे। मगर गोपाल तो हमेशा के लिए चुप हो चुका था। जिसने उसे घर निकाला था उस आदमी की नजर गोपाल के एक हाथ पर पड़ी। उस हाथ में वही एक रूपये का सिक्का था। यह देखकर वह गोपाल से लग कर रो पड़ा।
अब गोपाल की जगह रमेश ने ली। गोपाल का सारा कारोबार रमेश संभालने लगा। मगर रमेश अपने दोस्त गोपाल को कभी भुल न सका।
"करना था मुझे उजाला इस संसार
ढलती शाम से पहले
हो गया मैं अस्त इस संसार में
ढलती शाम से पहले........."
Writer: Aditya Kumar
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