समाज में थी, बुराईयाँ व्याप्त,
थी कहीं, अच्छाईयाँ समाप्त।
हमारे सारे सपने टुटे,
अपने पराये सारे रूठे।
लेकिन मैंने कोशिश करना नहीं छोड़ा,
कभी मैंने जिन्दगी का साथ नहीं छोड़ा।
कोशिश करने वालों की नहीं होती हार,
जल्द ही पहना मैनें विजय की वह माला हजार।
Writer: Aditya Kumar
Tags:
Poetry
Hello nice poem
ReplyDeleteHello nice poem
ReplyDeleteMast
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